376 IPC के तहत सजा और हाईकोर्ट का अधिकार: ज्ञानेंद्र सिंह @ राजा सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2025 का फैसला)

 

भूमिका

 

7 मार्च 2025 को सर्वोच्च न्यायालय ने ज्ञानेंद्र सिंह @ राजा सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में एक अहम फैसला सुनाया। यह मामला भारतीय दंड संहिता (IPC ) की धारा 376 (2)(f) और 376(2)(i) तथा पॉक्सो अधिनियम (POCSO Act) की धारा 3/4 के तहत दर्ज किया गया था।

इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने न केवल 376 IPC के तहत दी गई सजा की समीक्षा की, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट किसी दोषी की सजा को बिना विशेष अपील के नहीं बढ़ा सकता।

 

मामले का संक्षिप्त विवरण

 

यह मामला फतेहपुर, उत्तर प्रदेश का है, जहां 2015 में एक 9 वर्षीय बालिका के साथ दुष्कर्म का मामला सामने आया था। पीड़िता के पिता, ज्ञानेंद्र सिंह @ राजा सिंह को इस अपराध का दोषी ठहराया गया था।

 

मुख्य घटनाक्रम:

 

FIR दर्ज: पीड़िता की माँ ने पुलिस स्टेशन चांदपुर, जिला फतेहपुर में शिकायत दर्ज कराई।मेडिकल जांच: डॉक्टरों ने पीड़िता के शरीर पर चोट के कोई निशान नहीं पाए, लेकिन लैबिया मिनोरा में लाली (redness) देखी गई।गिरफ्तारी: पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया।

 

ट्रायल कोर्ट (2016):

 

आरोपी को IPC की धारा 376(2)(f) और 376(2)(i) तथा POCSO अधिनियम की धारा 3/4 के तहत दोषी ठहराया गया।आजीवन कारावास (Life Imprisonment) और ₹25,000 का जुर्माना लगाया गया।

 

इलाहाबाद हाईकोर्ट (2019):

 

दोषसिद्धि को सही ठहराया।सजा को बढ़ाते हुए आदेश दिया कि आरोपी को पूरी उम्र जेल में रहना होगा (life imprisonment till natural life)।

 

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय (2025)

 

आरोपी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की, जिसमें उसने हाईकोर्ट द्वारा सजा बढ़ाने पर सवाल उठाया।

 

1. क्या हाईकोर्ट सजा बढ़ा सकता है?सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हाईकोर्ट को सजा बढ़ाने का अधिकार नहीं था क्योंकि अभियोजन पक्ष ने कोई विशेष अपील (appeal for enhancement) दायर नहीं की थी।

कोर्ट ने कहा कि अगर दोषी खुद अपील करता है, तो अदालत उसकी सजा और बढ़ाने का निर्णय नहीं ले सकती, जब तक कि अभियोजन पक्ष भी ऐसा न चाहे।

2. IPC बनाम POCSO – कौन सा कानून लागू होगा?बचाव पक्ष ने दलील दी कि POCSO एक विशेष कानून (special law) है, इसलिए IPC के तहत सजा नहीं दी जानी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि IPC की धारा 376(2)(f) और 376(2)(i) की सजा अधिक कठोर है, इसलिए IPC को प्राथमिकता मिलेगी।

3. अंतिम निर्णय आजीवन कारावास (life imprisonment till natural life) को घटाकर 30 वर्षों की सजा में बदला गया।

आरोपी को ₹5,00,000 का जुर्माना भरने का आदेश दिया गया, जो पीड़िता को दिया जाएगा।

 

इस फैसले का कानूनी महत्व

1. हाईकोर्ट बिना विशेष अपील के सजा नहीं बढ़ा सकता।

2. IPC बनाम POCSO – जब अपराध दोनों कानूनों के तहत आता है, तो जहां अधिक सजा है, वह कानून लागू होगा।

3. दोषियों के अधिकारों की सुरक्षा – यह फैसला यह भी सुनिश्चित करता है कि बिना उचित अपील के सजा नहीं बढ़ाई जा सकती।

 

निष्कर्ष

 

यह फैसला भारतीय न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण नजीर है, जो यह स्पष्ट करता है कि हाईकोर्ट दोषी की सजा को मनमाने तरीके से नहीं बढ़ा सकता। साथ ही, यह भी स्थापित करता है कि IPC की धारा 376 के तहत अधिकतम सजा का प्रावधान होते हुए भी, अदालतें केस की परिस्थितियों के अनुसार सजा तय कर सकती हैं।

 

पूरा जजमेंट यहां डाउनलोड करें 

 

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